गेहूं.चावल सहित कई अन्य कृषि जिंसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य.एमएसपी में बढ़ोत्तरी करके सरकार ने किसानों को तो राहत देने की तो कोशिश की है लेकिन इसके साथ ही आने वाले दिनों में रसोईं का बजट बेकाबू हो जाने का इंतजाम भी हो गया है।
सरकार ने आगामी रबी मौसम के लिये गेहूं का समर्थन मूल्य 750 रूपए से 250 रूपए बढ़ाकर 1000 रूपए कर दिया है। पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में 4.5 फीसदी मंडी कर. प्रतिशत आढ़तिया कर. फीसदी वैट. दो प्रतिशत ग्रामीण विकास कर निजी और सरकारी सभी कंपनियों को देना होता है। पंजाब में एक प्रतिशत बुनियादी ढांचा विकास कर भी देना होता है।
इस प्रकार सरकार को ही अगले मौसम में गेहूं के लिये प्रति क्िवंटल कम से कम 1100 रूपए चुकाने होंगे। कहा जा रहा है कि सरकार गेहूं की एमएसपी पर 50 रूपए का बोनस भी देगी। अगर ऐसा होता है तो परिवहन शुल्क मिलाकर सरकार को गेहूं की खरीद लागत 1200 रूपए से कम नहीं पड़ेगी। निजी कंपनियां तो सरकार से अधिक ही भाव देंगी।
ऐसे में थोक मंडियों में जो गेहूं इन दिनों 1050.1060 रूपए प्रति क्िवंटल बिक रहा है वह अगले मौसम में 1300.1400 से कम नहीं मिलेगा। इसी अनुपात में आटे और मैदे की कीमतों में भी बढ़ोत्तरी होगी। ऐसे में महंगी रोटी खाने की आदत डाल लेने में ही भलाई है।
सरकार ने धान के समर्थन मूल्य पर 50 रूपए का बोनस घोषित किया है। इसके साथ ही सरकार ने जौ का समर्थन मूल्य 85 रूपए, चना और मसूर का 155 रूपए, सरसो एवं सूर्यमुखी बीज के एमएसपी में में 85 रूपए की बढोत्तरी की है।
एनसीडीएक्स इंस्टीट्यूट आफ कमोडिटी मार्केट्स एंड रिसर्च के निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी संजय कौल भी यह मानते हैं कि कृषि जिंसों का एमएसपी बढ़ाने से कीमतें तो बढ़नी ही हैं।
थोक मंडियों के कई कारोबारियों का कहना है कि आमतौर पर सरकार पहले मार्च अप्रैल में गेहूं की खरीद शुरू होने से पहले एमएसपी का एलान करती थी। लेकिन इस बार काफी पहले ही एमएसपी की घोषणा से स्टाकिस्टों को सक्रिय होने का मौका मिल गया है।
कारोबारियों का कहना है कि सरकार ने जिस दिन एमएसपी बढ़ाने की घोषणा की उसके ठीक दूसरे दिन थोक मंडियों में गेहूं.आटे और मैदे के भाव 50 से 60 रूपए प्रति क्िवंटल ऊंचे हो गए।
हालांकि श्री कौल सहित कई विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही एमएसपी बढ़ाने के कदम को चुनाव की आहट में उठाया गया कदम समझा जा रहा हो लेकिन बुवाई शुरू होने से पहले ही एमएसपी की घोषणा से किसान यह तय कर सकेगा कि उसे उसकी उपज की कम से कम कितनी कीमत मिलनी है।
कृषि मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार ने बुवाई सत्र से पहले ही एमएसपी का एलान नीतिगत फैसले के तहत किया है। सरकार अब बुवाई से पहले ही एमएसपी की घोषणा कर दिया करेगी।
इस मौसम में देश में पर्याप्त गेहूं नहीं मिलने पर विदेशों से दोगुने दाम पर गेहूं मंगाने के कारण चौतरफा आलोचना से सरकार इतना अधिक दबाव में आ गयी थी कि उसे एमएसपी बढ़ाने का कदम उठाना पड़ा।
हालांकि कई विशेषज्ञों का मानना है कि केवल एमएसपी बढ़ाने से किसानों की समस्या का समाधान नहीं हो सकता। सरकार को पूरी गेहूं खरीद प्रक्रिया में ही सुधार करने की जरूरत है जिससे उसे पर्याप्त देश में ही पर्याप्त गेहूं और अन्य अनाज मिल सके।
कमोडिटीज कंट्रोल डौट काम के प्रमुख कमल शर्मा का मानना है कि खेती किसानों के लिये लाभकारी हो इसके लिये जरूरी है कि किसानों को अपने उत्पादों को किसी भी बेचने की पूरी छूट होनी चाहिये। साथ उन्हें उनकी उपज का पूरा पैसा तत्काल मिलने की व्यवस्था की जानी चाहिये।
श्री शर्मा का कहना है कि अगर गन्ना किसानों की बात की जाए तो गन्ना पेराई का नया सत्र शुरू हो गया है लेकिन उन्हें पिछले सीजन का ही पैसा नहीं मिल सका है। इसके साथ ही फसल बीमा योजना को सही तरीके से लागू करना चाहिये ताकि किसानों का जोखिम कुछ हद तक कम हो सके।
दूसरी ओर श्री कौल का सुझाव है कि सरकार को पहले तो जितना गेहूं मिल सके खरीदना चाहिये। उसके बाद अगर गेहूं कम पड़ता है तो आयात करने के बजाए घरेलू बाजार में ही निविदा निकालनी चाहिये।
सरकार के गेहूं और अन्य कृषि उत्पादों का एमएसपी बढ़ाने से यह तो तय हो गया है कि गरीबों की रोटी और महंगी ही होगी और इसमें कमी आने की फिलहाल तो कोई सूरत नजर नहीं आती। लेकिन सरकार को कृषि उत्पाद खरीद व्यवस्था को दुरूस्त करते हुए दूर दराज के इलाकों तक अपनी पहुंच बढ़ानी चाहिये ताकि गेहूं जैसे अनाजों के आयात की नौबत ना आए।
बेहतर लेखन के लिए धन्यवाद।