विदेशों से लगभग दोगुने दाम पर गेहूं आयात करने के फैसले पर सरकार चौतरफा आलोचना से घिर गयी है। लेकिन अगर वह थोड़ी सी समझदारी दिखाती तो उसे देश में ही आयतित दाम से कहीं अधिक सस्ता गेहूं मिल जाता।
सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणालीण्पीडीएस और सुरक्षित स्टाक के लिये इस बार 1.5 करोड़ टन सरकारी खरीद का लक्ष्य रखा था लेकिन वह लगभग 1.1 करोड़ टन गेहूं ही खरीद सकी। इस प्रकार करीब 40 लाख टन गेहूं सरकार को कम मिल पाया।
इस कमी को पूरा करने के लिये सरकार ने अब तक गेहूं आयात के तीन टेंडर निकाले हैं। पहला टेंडर मई में निकाला गया जिसके लिये कंपनियों ने औसत 263 डालर प्रति टन की बोली दी जिसे सरकार ने महंगा बताकर खारिज कर दिया। लेकिन दो महीने बाद ही सरकार ने औसतन 325 डालर प्रति टन के भाव पर 5.11 लाख टन गेहूं आयात का सौदा कर लिया। पिछले दिनों सरकार ने औसतन 390 डालर के भाव पर 7.9 लाख टन गेहूं आयात का एक और सौदा किया है।
सरकार को गुजरात के मुंदरा बंदरगाह पर विदेशों से आयतित गेहूं करीब 1600 रूपए प्रति क्विंटल पड़ेगा और विश्लेषकों के अनुसार दिल्ली तक आते आते इसके भाव 1700 रूपए प्रति क्विंटल तक पहुंच जाएंगे। दूसरी ओर सरकार ने अपने किसानों को 750 रूपए समर्थन मूल्य और 100 रूपए का बोनस यानी कुल 850 रूपए प्रति क्विंटल का भाव दिया था।
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि देश में इस बार गेहूं का उत्पादन कम हुआ है जिसकी वजह से सरकार के पास विदेशों से गेहूं मंगाने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा हो। सरकारी अनुमान के अनुसार इस साल देश में करीब 7.5 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ है जो पिछले साल के लगभग 6.95 करोड़ टन से करीब 60 लाख टन अधिक है। इस बार साल 2000 के बाद सबसे अच्छी फसल हुई है। उस साल करीब 7.64 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।
वामपंथी दलों, विपक्ष और कृषि वैज्ञानिकों ने भी दोगुने दाम पर गेहूं आयात करने का कड़ा विरोध किया है। जनता दल यूनाइटेड के शरद यादव ने तो मुंदरा बंदरगाह से गेहूं न उतरने तक की धमकी दी है। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इसे दिन दहाड़े लूट और घोटाला करार दिया है।
भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम.एस स्वामीनाथन ने खाद्य सुरक्षा के नजरिये से गेहूं आयात का समर्थन जरूर किया है लेकिन उन्होंने अत्यंत महंगाई के समय लेकर सवाल उठाये हैं।
यही नहीं डा. स्वामीनाथन ने गेहूं खरीद के पूरे सरकारी प्रबंधन पर सवालिया निशान लगाए हैं। पिछले दिनों उन्होंने एक निजी टीवी चैनल से बातचीत में कहा कि चार पांच सालों के दौरान गेहूं का सुरक्षित भंडार लगातार गिरता गया है।
उनका कहना है कि घरेलू बाजार में निजी कंपनियों को सीधी खरीद की इजाजत देने के सरकार के फैसले की समीक्षा होनी चाहिये। कारगिल जैसी बड़ी निजी कंपनियों को किसानों से सीधे गेहूं खरीदने की इजाजत मिलने के बाद इस तरह के परिणाम आश्चर्यजनक नहीं हैं।
डा. स्वामीनाथन की बातों पर गौर किया जाए तो पूरे खाद्य प्रबंधन में एक झोल नजर आता है। कृषि मंत्री शरद पवार ने अप्रैल में ही कह दिया था कि सरकार इस बार भी करीब 55 लाख टन गेहूं का आयात करेगी। इतने पहले ही सरकार की इस घोषणा से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गेहूं के दाम चढ़ने में मदद मिली।
यह सच है कि इस बार पूरे विश्व में गेहूं की फसल अच्छी नहीं है। कनाडा, अमरीका और आस्ट्रेलिया में गेहूं की फसल खराब हुई है। लेकिन भारत के इतनी भारी मात्रा में आयात की घोषणा से दाम और चढे। अमरीका में शिकागो के सेंट्रल बोर्ड आफ ट्रेड में 31 जून को गेहूं के भाव जहां 5.97 डालर प्रति बुशेल थे वहीं भारत के गेहूं आयात की अटकलों के बीच 31 अगस्त को इसके भाव बढ़कर 8.05 डालर प्रति बुशेल हो गए।
गौरतलब है कि सरकार ने अब तक लगभग 13 लाख टन गेहूं आयात का फैसला किया है जबकि इस बार निजी कंपनियों ने 850 रूपए क्विंटल के सरकारी भाव के मुकाबले 870 रूपए से 925 रूपए प्रति क्विंटल का दाम देकर करीब 11.10 लाख टन गेहूं की खरीद की है। मतलब साफ है कि अगर सरकार ने दाम अधिक दिये होते या निजी कंपनियों को किसानों से सीधी खरीद पर रोक लगी होती तो सरकार को गेहूं आयात की जरूरत हीं पड़ती।
विश्लेषकों का कहना है कि सरकार ने अगर अंतरराष्ट्रीय टेंडर के बजाए घरेलू बाजार से गेहूं खरीदने का प्रयास करती तो देश में इस बार इतनी पैदावार हुई है कि उसे यहीं विदेशों से कहीं सस्ता गेहूं मिल जाता।
इन दिनों स्थानीय थोक मंडियों में मिल क्वालिटी गेहूं के दाम 1000.1015 रूपए प्रति क्विंटल के बीच चल रहे हैं। कारोबारियों ने आशंका जतायी है कि सरकार के दोगुने दाम पर गेहूं आयात के इस फैसले से आगे आने वाले त्योहारी मौसम में गेहूं के दाम चढ सकते हैं।
कारोबारियों का कहना है कि ऐसा लगता है कि सरकार मान चुकी है कि आगे आने वाले दिनों में गेहूं के भाव और चढ़ेगे। अगले दो महीनों में किसान अपना बचा हुआ स्टाक भी मिलों के पास ले आएंगे। ऐसे में वे आयतित कीमत के हिसाब से दाम चाहेंगे।
विश्लेषकों का कहना है कि सरकार अगर गेहूं आयात से बचना चाहती है तो उसे किसानों के लिये गेहूं के समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी के साथ ही सरकारी खरीद की पूरी व्यवस्था ही चुस्त दुरूस्त करनी होगी। इसके साथ भूमि का उपजाऊपन बनाए रखने के लिये आर्गनिक कृषि को बढ़ावा दिये जाने की जरूरत है।
टिप्पणी करे